جمعرات، 2 اکتوبر، 2025

-: दज्जाल विरोधी प्रदर्शन की लहर :-

 -: दज्जाल विरोधी प्रदर्शन की लहर :-



इज़राइली नौसेना की ओर से ग़ज़ा के लिए रवाना होने वाले "असतूल अल-समूद" को रोकने और उसकी कई नौकाओं को अस्दोद बंदरगाह की ओर मोड़ने के बाद यूरोप और अरब दुनिया के विभिन्न शहरों में जन प्रदर्शन शुरू हो गए।


रोम, ब्रुसेल्स, बार्सिलोना, बर्लिन, एथेंस और पेरिस जैसे यूरोपीय राजधानियों में हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए और इज़राइली कार्रवाई को "ग़ैरक़ानूनी और समुद्री डकैती" करार दिया। बार्सिलोना में इज़राइली दूतावास के सामने भी प्रदर्शन किया गया, वहीं इस्तांबुल में बड़े पैमाने पर विरोध मार्च हुआ।


अरब दुनिया में भी ग़ुस्सा देखने को मिला। मॉरिटानिया की राजधानी नुआकशोत में अमेरिकी दूतावास के सामने प्रदर्शन किया गया और ट्यूनीशिया में जनता की भारी संख्या ने इज़राइली हमले के ख़िलाफ़ रैली निकाली।


अल-जज़ीरा के मुताबिक़ इज़राइली नौसेना अब तक तक़रीबन 15 नौकाओं पर क़ब्ज़ा कर चुकी है, जिन पर मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार मौजूद थे। इनमें "अल-जज़ीरा मुباشिर" की संवाददाता हयात अल-यमानी भी शामिल हैं। इज़राइली सूत्रों का कहना है कि बाक़ी नौकाओं पर भी जल्द क़ब्ज़ा कर लिया जाएगा।


यह विरोध लहर इस बात का साफ़ सबूत है कि "असतूल अल-समूद" पर इज़राइली कार्रवाई ने वैश्विक स्तर पर कड़ी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है। विभिन्न देशों में इसे ग़ज़ा की मज़लूम जनता के ख़िलाफ़ ज़ुल्म और मानवीय मदद पर हमला क़रार दिया जा रहा है।


दुआ है कि यह जागरूकता और प्रदर्शन और मज़बूती पकड़े ताकि ट्रम्प के ज़रिए दज्जाली साज़िशों को दी जाने वाली फ़ेस-सेविंग की शैतानी कोशिश नाकाम हो।


( मोहम्मद अहमद रज़ा चिश्ती अशरफ़ी)

جمعرات، 25 ستمبر، 2025

-: मौलाना मुहम्मद अहमद रजा चिश्ती अशरफी :. एक सर्वपक्षीय आलिम व धार्मिक शख्शियत :-


-: मौलाना मुहम्मद अहमद रजा चिश्ती अशरफी :. एक सर्वपक्षीय आलिम व धार्मिक शख्शियत :-



मौलाना मुहम्मद अहमद रजा चिश्ती अशरफी, जिन्हें Ahmadullah Saeedi सईदी के नाम से भी जाना जाता है, वर्तमान में उत्तर दिनाजपुर जिले के सुरजापुर-डालकोला क्षेत्र के एक प्रमुख धार्मिक, विद्वान और कल्याणकारी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। वह समालिया में एक सम्मानित और प्रसिद्ध परिवार "मुंशी राजवंश" है। 30 जून 1996 में पैदा हुए। उनकी शैक्षणिक, प्रेरक, शैक्षिक और कल्याणकारी उपलब्धियां न केवल उनके गांव बल्कि व्यापक क्षेत्र में प्रशंसनीय और अनुकरण के योग्य हैं।


प्रारंभिक शिक्षा और क्षेत्र यात्रा


मौलाना की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही एक स्थानीय धार्मिक संस्था में हुई, लेकिन उनकी बौद्धिक क्षमता और असामान्य बुद्धिमत्ता को समझते हुए उनके बड़े अब्बू हज़रत अल्लामा और मौलाना आलमगीर रज़ा साहिब किबला ने उन्हें सिर्फ पांच साल की उम्र में इलाहाबाद के एक स्कूल भेज दिया। स्वीकार किया। वहां उन्होंने अपनी बुद्धि और बुद्धि से उत्कृष्ट उपलब्धियां हासिल की और हमेशा उत्कृष्ट पद के साथ शैक्षणिक मार्ग निर्धारित किए।


मौलाना अहमद रज़ा ने अपनी माँ की चाहत पर कुरआन को याद करने का सौभाग्य प्राप्त किया। इसके लिए उन्हें मदरसा फैजान उल उलूम दन्दूपुर में भर्ती कराया गया। बाद में, उन्होंने उच्च धार्मिक शिक्षा के लिए प्रसिद्ध संस्थान, जामिया अरफिया, सैयद सरवान में प्रवेश किया, जहां उन्होंने पढ़ाई की। दुनियादारी, उत्कृष्टता के सभी चरण बहुत सफलतापूर्वक पूर्ण किए और वहाँ से स्नातक प्रमाण पत्र प्राप्त किया।


शिक्षण, लेखन और रचनात्मक सेवाएं


मौलाना अहमद रजा धार्मिक उलेमा के विद्वान हैं। उनके लेख समय-समय पर विभिन्न पत्रिकाओं, समाचार पत्रों और वेबसाइट्स को सुशोभित करते रहते हैं। वह आधुनिक मुद्दों और धार्मिक मार्गदर्शन पर अपनी धर्मनिरपेक्ष चर्चा के लिए जाने जाते हैं। उनके लेखन में समय की नब्ज, भाषा और अभिव्यक्ति में महारत और समस्या समझने की गहराई को समझने की भावना है।


अर्फिया विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई के दौरान, उन्होंने गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसरों को मनाने की पहल की, जिसे बाद में संस्थान के प्रशासन ने स्वीकार कर लिया। इस प्रकार, उन्होंने धार्मिक और आम चेतना में सामंजस्य बनाने में भी सकारात्मक भूमिका निभाई। क्या... क्या...


कल्याणकारी सेवाएं और सामाजिक नेतृत्व


कोरोना की वैश्विक महामारी के बाद घर लौटे मौलाना और अपने ही इलाके में बसे। लौटने के बाद उन्होंने अपने बौद्धिक, धार्मिक और कल्याणकारी चरित्र से गांव और आसपास के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बदलाव लाया। एक अवसर पर वह खरी बसूल में प्रकट हुए। वाले की आग की त्रासदी में आल इंडिया उलेमा व मशैख बोर्ड के अध्यक्ष हजरत मुहम्मद अशरफ मियां साहब किबला से संपर्क किया और पीड़ितों के लिए 2.5 लाख रुपये की सहायता प्रदान की। इसके अलावा निजी प्रयासों से उन्होंने ग्रामीणों से अतिरिक्त 2.5 लाख रुपये वसूल किए। प्रभावित परिवारों को अग्रेषित किया।


उनके नेतृत्व में जब भी कोई दुर्घटना हुई चाहे मौत और विरासत की बात हो या प्राकृतिक आपदा की बात हो, मौलाना व्यावहारिक सेवा देने के लिए आगे-पीछे चले गए। खासकर जब कोई विदेशी मरता है तो लाश को गांव लाने का पूरा खर्चा उड़ाता है। स्थानीय इकाई भालू, मौलाना अहमद रजा अभिनीत।


संस्थागत उपलब्धियाँ


पूर्व प्रधान गुलाम सरवर चौधरी, मौलाना रिजवान हाशिम और अन्य पदाधिकारियों के सहयोग से उन्होंने अपने गांव समलिया में ऑल इंडिया उलेमा और मशैख बोर्ड की इकाई स्थापित की। इस इकाई के तहत क्षेत्र में कल्याण व धार्मिक कार्यों का जाल बिछाया गया जिसमें मौलाना शहबाज आलम चिश्ती भी शामिल है। समर्थन भी शामिल था। मौलाना अहमद रज़ा ने विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं, शैक्षिक सुविधाओं और धार्मिक सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


मदनी कैमरेज स्कूल: शिक्षा और प्रशिक्षण का केंद्र


मौलाना मुहम्मद अहमद रजा न केवल एक धार्मिक विद्वान और निबंधकार हैं, बल्कि एक प्रतिभाशाली शैक्षिक प्रशासक भी हैं। ये सुरजापुर के जाने माने शिक्षण संस्थान मदनी कामराज स्कूल के प्रिंसिपल हैं, जहा आधुनिक शिक्षा के साथ साथ धर्म और नैतिकता की तालीम पर एक विशेष कविता की गयी है। स्कूल की विशिष्टता यह है कि इसमें अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा के साथ धर्मों का सम्पूर्ण पाठ्यक्रम भी शामिल है, जो सक्षम है छात्रों का व्यापक प्रशिक्षण।


सिद्धांत और अनुपात


मौलाना मुहम्मद अहमद रजा हनाफी अधिकार क्षेत्र में हैं, और अकीद के अध्याय में मतिरीदी मकतब फिकर से जुड़े हैं। उनका आध्यात्मिक पेय चिश्ती है, और वह श्रृंखला चिश्तीया की शिक्षाओं और आध्यात्मिकता से गहराई से जुड़ा हुआ है। विश्वास और व्यवहार दोनों में उसका प्रकाश ईर्ष्यालु है, लेकिन फिर भी कुछ दुष्ट तत्व उनके बारे में संदेह फैलाने में प्रयासरत रहते हैं। लेकिन उनका जीवन और चरित्र इस बात का प्रमाण है कि वे धर्म और सुन्नाह में हमेशा अटल रहे हैं। यही कारण है कि अहल-ए-सुन्नाह। उनका कई ज़ीद विद्वान लोगों से गहरा संबंध है।


क्लोज़र


मौलाना मुहम्मद अहमद रजा चिश्ती अशरफी एक हरफनमौला, संतुलित और सक्रिय व्यक्तित्व हैं। उनका जीवन ज्ञान, अभ्यास, सेवा, ईमानदारी और नेतृत्व का एक सुंदर संयोजन है। उनके लिखित और भाषण कौशल, सांगठनिक समझ, शैक्षिक अंतर्दृष्टि और कल्याण गतिविधियाँ उन्हें नई पीढ़ी के लिए एक आदर्श बनाती हैं। ऐसे आलिमों की मौजूदगी देश के लिए वरदान और गर्व का कारण है।



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ہفتہ، 12 جولائی، 2025

-: بات کی تاثیر، اندازِ بیان میں پنہاں ہے :-


 -: بات کی تاثیر، اندازِ بیان میں پنہاں ہے :-


روایت ہے کہ ایک بادشاہ نے خواب میں دیکھا کہ اُس کے تمام دانت ٹوٹ کر گر چکے ہیں۔


بادشاہ نے فوراً خواب کی تعبیر جاننے کے لیے ایک ماہر معبر کو دربار میں طلب کیا اور اپنا خواب سنایا۔


معبر نے بغور خواب سُنا، پھر پوچھا:

"بادشاہ سلامت! کیا آپ کو کامل یقین ہے کہ آپ نے یہی خواب دیکھا ہے؟"


بادشاہ نے اثبات میں جواب دیا۔


معبر نے "لاحول ولا قوۃ الا باللہ" پڑھا اور عرض کی:

"عالی جاہ! خواب کی تعبیر یہ ہے کہ آپ کے تمام اہلِ خانہ آپ کی زندگی میں وفات پا جائیں گے۔"


بادشاہ اس بات سے سخت برہم ہوا، چہرہ غیظ و غضب سے سرخ ہو گیا۔ درباریوں کو حکم دیا کہ اس معبر کو فوراً قید خانے میں ڈال دیا جائے، اور کسی دوسرے معبر کو بلایا جائے۔


دوسرا معبر آیا، خواب سُنا، اور کم و بیش یہی تعبیر پیش کی۔ انجام وہی ہوا، قید خانہ اس کا مقدر ٹھہرا۔


تیسرے معبر کو طلب کیا گیا۔ بادشاہ نے خواب سنایا۔ معبر نے وہی سوال کیا:

"جہان پناہ! کیا آپ کو یقین ہے کہ یہی خواب آپ نے دیکھا ہے؟"


بادشاہ نے فرمایا: "ہاں، یقیناً یہی خواب میں نے دیکھا ہے۔"


معبر نے مسکرا کر عرض کی:

"بادشاہ سلامت! مبارک ہو! آپ ماشاء اللہ اپنے خاندان میں سب سے طویل عمر پائیں گے۔"


بادشاہ نے تعجب سے پوچھا:

"کیا یہی اس خواب کی تعبیر ہے؟"


معبر نے باادب عرض کیا:

"جی حضور، بعینہٖ یہی تعبیر ہے۔"


بادشاہ نہایت خوش ہوا، معبر کو انعام و اکرام سے نوازا اور عزت و احترام کے ساتھ رخصت کیا۔


اب غور فرمایئے!

پہلے معبر نے یہی کہا تھا کہ بادشاہ اپنے سب گھر والوں کی موت دیکھے گا،

جبکہ تیسرے معبر نے کہا کہ بادشاہ سب سے لمبی عمر پائے گا۔


مطلب دونوں تعبیرات کا ایک ہی تھا،

لیکن فرق صرف "اندازِ بیان" کا تھا۔


لہٰذا بات کی تاثیر اور قبولیت کا راز محض الفاظ میں نہیں، بلکہ انداز اور حکمتِ گفتار میں پوشیدہ ہے۔


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جمعہ، 4 جولائی، 2025

عقل کی کمی مسکراہٹ کی زیارتی؟

 عقل کی کمی، مسکراہٹ کی زیادتی؟



یہ خاکہ نہ صرف ایک فنکارانہ اظہار ہے بلکہ ایک گہری سچائی کا مظہر بھی ہے۔ تصویر میں جیسے جیسے دماغ چھوٹا ہوتا جاتا ہے، ویسے ویسے چہرے پر مسکراہٹ بڑھتی جاتی ہے۔ بظاہر یہ ایک مزاحیہ خاکہ ہے، لیکن حقیقت میں یہ ہمارے معاشرے کی ایک تلخ حقیقت کی عکاسی کرتا ہے۔


ہم نے اپنی فکری وسعت، علم کی گہرائی اور عقل و شعور کو رفتہ رفتہ خوشی کی جگہ دے دی ہے، مگر یہ خوشی محض لا علمی پر مبنی ہے، شعور سے محرومی کی ایک مصنوعی مسکراہٹ ہے۔


 اصل سوال یہ ہے کیا کم سوچنے، کم سمجھنے اور کم جاننے سے انسان واقعی خوش ہوتا ہے؟

یا یہ خوشی ایک دھوکا ہے؟ ایک ایسا پردہ جو ہمیں خود احتسابی سے روکے رکھتا ہے؟


 یقیناً زندگی میں بیلنس ضروری ہے۔

علم، شعور اور عقل ہمیں بہتر فیصلے لینے، بہتر زندگی گزارنے اور ایک مثبت معاشرہ تشکیل دینے میں مدد دیتے ہیں۔ مسکراہٹ خوبصورت تب لگتی ہے جب وہ شعور کے ساتھ ہو، جب وہ سنجیدگی، دانائی اور محبت کی پیداوار ہو، نہ کہ غفلت، جہالت اور بے فکری کی۔


 آئیے، سیکھنے اور سوچنے کی روش کو اپنائیں۔

 ضرور خوش رہیں!




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بدھ، 2 جولائی، 2025

خوشی منانے کا علاقائی انداز اور اس کی شرعی حیثیت



خوشی منانے کا علاقائی انداز اور اس کی شرعی حیثیت


تحریر: محمد احمد رضا چشتی اشرفی رکن آل انڈیا علماء و مشائخ بورڈ یونٹ سملیا 



دنیا بھر میں خوشی منانے کے طریقے مختلف ہوتے ہیں۔ ہر قوم، ہر علاقے اور ہر تہذیب کے لوگ اپنے اپنے مخصوص انداز میں خوشی کا اظہار کرتے ہیں۔ ہندوستان جیسے کثیرالثقافتی ملک میں بھی ہر خطے کی اپنی روایات، رسمیں اور خوشی منانے کے انداز پائے جاتے ہیں۔ ہمارے علاقے میں بھی خوشی کے مواقع پر اظہارِ مسرت کا ایک خاص اور منفرد طریقہ رائج ہے، جو اب گویا ایک ثقافتی روایت بن چکا ہے۔

ہمارے یہاں عام طور پر جب شادی بیاہ کی تقریبات ہوتی ہیں، یا کسی گھر کی بنیاد ڈالی جاتی ہے، یا کسی تعمیری یا نیک کام کی ابتدا کی جاتی ہے، تو اہلِ خانہ اور اہلِ محلہ خوشی کا اظہار ایک دوسرے پر رنگ ڈال کر کرتے ہیں۔ یہ رنگ برنگی خوشیاں صرف ایک دن یا ایک خاص موقع تک محدود نہیں ہوتیں بلکہ جب بھی کوئی موقع مسرت آتا ہے، لوگ اپنے جذبات کا اظہار اسی طریقے سے کرتے ہیں۔ یہ ایک ثقافتی اور علاقائی شعار بن چکا ہے جس میں ہندو اور مسلمان دونوں شامل ہوتے ہیں، اور اس کا مذہبی رنگ (جیسا کہ "ہولی") سے کوئی تعلق نہیں۔

گزشتہ دن ہمارے گاؤں کے محترم استاد، ماسٹر جاوید صاحب کے یہاں مکان کی بنیاد ڈالی گئی۔ انہوں نے مجھے اور دیگر اہلِ محلہ کو دعوت دی۔ وہاں میں نے دیکھا کہ ان کے اہلِ خانہ ایک دوسرے کو رنگ لگا کر خوشی کا اظہار کر رہے تھے۔ حتیٰ کہ ماسٹر صاحب کی والدہ نے مجھ سے بھی پوچھا کہ کیا وہ مجھے رنگ لگا دیں، مگر میں نے شکریہ کے ساتھ معذرت کی۔

اسی موقع پر ہمارے گاؤں کے امام محترم، مولانا نذر الاسلام صاحب نے اس رواج پر سوال اٹھایا اور فرمایا: "کیا یہ طریقہ ہولی سے مشابہ نہیں؟" ان کی بات سن کر میں نے مؤدبانہ عرض کیا کہ ہمارے علاقے میں یہ ہولی کی نقل نہیں بلکہ ایک علاقائی طریقہ ہے جو کسی مخصوص مذہب کی رسم نہیں بلکہ ایک ثقافتی اظہارِ خوشی ہے، جو شادی، تعمیر یا کسی بھی مثبت عمل کے آغاز پر اپنایا جاتا ہے۔ ہولی ایک خاص دن اور مذہبی پس منظر کے ساتھ منائی جاتی ہے، جب کہ یہاں کے لوگ بلا کسی مذہبی نیت کے، محض خوشی کے جذبے سے، رنگ کا استعمال کرتے ہیں۔

بعض افراد ہر نئی چیز کو بدعت یا گمراہی سے تعبیر کرتے ہیں، اور ان کا زاویہ نظر زیادہ سخت ہوتا ہے۔ ایسے میں ہمیں توازن اور فہم و بصیرت کے ساتھ کام لینا چاہیے۔ دین کی دعوت دینے والے افراد کا کام لوگوں کو قریب لانا ہونا چاہیے نہ کہ دین سے دور کرنا۔ اگر کوئی چیز نہ شرعی حکم کی مخالفت کرتی ہے اور نہ ہی کسی کفر یا شرک پر مبنی ہے، تو محض شبہ کی بنیاد پر اس کی مخالفت کرنا مناسب نہیں۔

ہمیں چاہیے کہ ہم دینی اعتدال، حکمت اور نرمی کے ساتھ لوگوں کی رہنمائی کریں، تاکہ وہ دین سے قریب ہوں، نہ کہ بدظن ہو کر دور جائیں۔ دین میں جہاں شریعت کے اصول اہم ہیں، وہیں لوگوں کی طبیعت، تہذیب اور عرف کا لحاظ بھی سنتِ نبوی ﷺ کا حصہ ہے۔


اسلام میں تعویذ کا حکم: ایک متوازن جائزہ

 -: اسلام میں تعویذ کا حکم ،ایک متوازن جائزہ :-


( تحریر: محمد احمد رضا چشتی اشرفی رکن آل انڈیا علماء و مشائخ بورڈ یونٹ سملیا)



اسلام میں تعویذ (یعنی کوئی دعا، قرآن کی آیت یا مخصوص کلمات کو لکھ کر پہننا یا لٹکانا) کے بارے میں علماء کے درمیان اختلاف موجود ہے۔ اس کی اجازت یا ممانعت اس بات پر منحصر ہے کہ تعویذ میں کیا لکھا گیا ہے اور اس سے متعلق انسان کا عقیدہ کیا ہے۔



اسلام میں تعویذ اس وقت جائز ہوتا ہے جب اس میں قرآن کی آیات، اللہ کے اسماء یا صحیح احادیث سے ثابت دعائیں شامل ہوں۔ اسے شرک یا جادو کی نیت سے نہ باندھا جائے بلکہ صرف دعا اور برکت کے طور پر استعمال کیا جائے۔ یہ عقیدہ رکھا جائے کہ تعویذ خود کچھ نہیں کرتا، بلکہ اللہ کے حکم سے اثر ہوتا ہے۔


صحابہ کرام میں سے حضرت عبداللہ بن عمرو رضی اللہ عنہ بچوں کو قرآنی آیات پر مبنی تعویذ لٹکایا کرتے تھے۔ امام احمد بن حنبل رحمہ اللہ سے بھی قرآن والے تعویذ کے جواز کی روایت موجود ہے۔


تعویذ اس وقت حرام ہو جاتا ہے جب اس میں غیر شرعی الفاظ، جادو، طلسم یا شیطانی کلمات شامل ہوں۔ اس کے ذریعے غیب دانی، قسمت بدلنے یا اللہ کے سوا کسی اور پر یقین رکھا جائے۔


رسول اللہ ﷺ نے فرمایا  "جس نے تعویذ لٹکایا، اس نے شرک کیا۔"(مسند احمد، سنن ابی داؤد) یہ ان تعویذوں کے بارے میں ہے جو شرک پر مبنی ہوں یا دین کے خلاف ہوں۔


قرآنی آیات یا اللہ کے ناموں پر مبنی تعویذ جائز ہے (اللہ پر یقین کے ساتھ) اور جادو، طلسم، یا غیر شرعی الفاظ والا تعویذ ناجائز اور حرام ہے۔ علاوہ ازیں تعویذ پر مکمل بھروسہ، اللہ کو بھول جانا شرک ہے ۔



بیشتر صوفیاۓ کرام اور بعض نیک علما تعویذ کو ایک ذریعۂ تبلیغ کے طور پر استعمال کرتے ہیں۔ غیر مسلم یا کمزور ایمان والے افراد تعویذ لینے کے بہانے ان کے پاس آتے ہیں، اور یوں ان کو اسلام کی خوبصورتی اور اللہ پر بھروسے کا پیغام ملتا ہے جو انتہائی مستحسن اقدام ہے ۔ لیکن افسوس کی بات یہ ہے کہ کچھ حضرات تعویذ کو ذریعہ معاش بنا لیتے ہیں۔ وہ لوگوں کی سادگی سے فائدہ اٹھا کر تعویذ بیچتے ہیں، پیسے لیتے ہیں، اور دین کو کاروبار بناتے ہیں۔ ایسے عمل سے تعویذ نہ صرف ناجائز بلکہ دین کی بدنامی کا سبب بن جاتا ہے۔


ہمیں چاہیے کہ ہم قرآنی دعاؤں اور مسنون اذکار کو سیکھیں اور دوسروں کو بھی سکھائیں۔ اولا تعویذ کی بجائے اللہ سے دعا اور قرآن سے رجوع کو اپنا معمول بنائیں۔


اگر تعویذ کا استعمال کیا جائے تو اس میں صرف شرعی، صاف اور واضح الفاظ ہوں اور مکمل توکل اللہ ہی پر ہو۔


یاد رکھیں ،اصل حفاظت اور شفا صرف اللہ کے ہاتھ میں ہے۔ تعویذ اگر عقیدے کو کمزور کرے تو نقصان دہ ہے، اور اگر ایمان کو مضبوط کرے تو فائدہ مند بن سکتا ہے۔


واللہ أعلم

منگل، 1 جولائی، 2025

ہندوستانی بینکنگ نظام: شہری عزت دیہی زحمت؟

 -: ہندوستانی بینکنگ نظام: شہری عزت، دیہی زحمت؟ :- 


( تحریر: محمد احمد رضا چشتی اشرفی رکن آل انڈیا علماء و مشائخ بورڈ یونٹ سملیا )


(بینکنگ کے نام پر چارجز کی چالاکیاں اور دیہی عوام کے ساتھ ناانصافی)



ہندوستان میں اس وقت ہزاروں بینک شاخیں (branches) اور درجنوں بڑے مالیاتی ادارے موجود ہیں، جو کروڑوں لوگوں کی بینکنگ ضروریات پوری کر رہے ہیں۔ لیکن سوال یہ ہے کہ کیا یہ بینک سبھی صارفین کے ساتھ یکساں سلوک کرتے ہیں؟ کیا دیہی اور شہری صارفین کو ایک جیسا احترام اور سہولت دی جاتی ہے؟


شہری علاقوں میں بہتر سروس، گاؤں میں بے توجہی:


یہ حقیقت ہے کہ شہری علاقوں میں بینکوں کے ایمپلائیز خوش اخلاق ہوتے ہیں، سسٹم بہتر ہوتا ہے، اور کام جلدی اور شفاف طریقے سے کیا جاتا ہے۔ لیکن جب یہی بینک دیہی علاقوں میں کام کرتے ہیں تو ان کا رویہ اکثر تبدیل ہو جاتا ہے۔

گاؤں دیہات کے معصوم، کم تعلیم یافتہ لوگوں کے ساتھ بعض بینک ملازمین بدتمیزی، بد اخلاقی اور لاپروائی سے پیش آتے ہیں۔ نہ صحیح رہنمائی، نہ شفاف معلومات، اور نہ ہی وقت کی قدر۔


میرے ذاتی مشاہدات:


1. ایچ ڈی ایف سی (HDFC)، ICICI، بینک آف انڈیا، بینک آف بڑودا


یہ بینک قابلِ تعریف خدمات فراہم کرتے ہیں۔

ان کا سسٹم محفوظ، عملہ تربیت یافتہ، اور سروس تیز ہوتی ہے۔ لوگ ان بینکوں پر بھروسہ کرتے ہیں، اور اکثر معزز شخصیات بھی ان میں اکاؤنٹس کھولتے ہیں۔


2. ایکسس بینک، اسٹیٹ بینک آف انڈیا (SBI)، پنجاب نیشنل بینک (PNB)


ان بینکوں کی بعض شاخوں میں خاص طور پر دیہی علاقوں میں انتہائی سست روی، لاپرواہی، اور غیر ضروری چارجز کا چلن ہے۔


حال ہی میں میں اپنے چچیرے دادا ماسٹر فرید عالم صاحب کے ساتھ Axis Bank گیا۔

صرف 2 مہینے کا بینک اسٹیٹمنٹ نکلوانے میں ڈھائی گھنٹے ضائع ہوئے۔

بار بار یاد دہانی کے باوجود ملازمین توجہ نہیں دے رہے تھے۔ جب غصہ ہوا، تب جا کر کام ہوا۔


 "ڈکیتی" کے انداز میں چارجز کی کٹوتی:


دیہی علاقوں میں Axis بینک کے ملازمین محلہ محلہ گھوم کر "زیرو بیلنس اکاؤنٹ" کے نام پر لوگوں کو لبھاتے ہیں، لیکن:


اکاؤنٹ کھلنے کے بعد بے شمار غیر واضح چارجز لگائے جاتے ہیں


₹3500 سے کم بیلنس ہونے پر ماہانہ جرمانہ


₹400، ₹600، ₹800 تک کی کٹوتی بغیر اطلاع


اکاؤنٹ بند کروانے پر 6 مہینے کی شرط


بار بار "تاریخ پر تاریخ" دے کر ٹال مٹول


یہ طریقہ دیہی صارفین کے ساتھ دھوکہ دہی اور بدعنوانی کی مثال ہے۔


 ایک اور مثال: بینک آف بڑودا


میرے والدہ کے اکاؤنٹ میں ڈیبٹ کارڈ کی مدت ختم ہو چکی ہے، لیکن نیا کارڈ جاری نہیں کیا گیا۔ پھر بھی ہر مہینے اس کا چارج کاٹا جا رہا ہے۔ یہ سیدھی سیدھی بے ایمانی ہے۔


عوام کے لیے مفید مشورے:


1. گھر آ کر اکاؤنٹ کھلوانے والے ملازمین پر کبھی بھروسہ نہ کریں


2. بینک میں جا کر خود مینجر یا اسٹاف سے تفصیل میں پوچھ کر ہی اکاؤنٹ کھلوائیں


3. ہر چارج، سروس فیس، اور ATM سروس کے بارے میں صاف اور تحریری معلومات حاصل کریں


4. بینک کا اسٹیٹمنٹ ہر مہینے چیک کریں تاکہ چارجز کا پتہ چلے


5. اگر کوئی بدتمیزی کرے یا غیر واضح کٹوتی ہو تو RBI کی شکایت ویب سائٹ پر رپورٹ کریں:

🔗 https://cms.rbi.org.in


 نتیجہ:


بینکنگ نظام کو عوام دوست اور دیانت دار ہونا چاہیے، خاص طور پر دیہی صارفین کے ساتھ، جو پہلے ہی شعور اور وسائل میں محدود ہوتے ہیں۔

عوام الناس کو چاہیے کہ ہر مالیاتی معاملے میں تحقیق، ہوشیاری، اور احتیاط سے کام لیں تاکہ بعد میں پچھتانا نہ پڑے۔

-: दज्जाल विरोधी प्रदर्शन की लहर :-

 -: दज्जाल विरोधी प्रदर्शन की लहर :- इज़राइली नौसेना की ओर से ग़ज़ा के लिए रवाना होने वाले "असतूल अल-समूद" को रोकने और उसकी कई नौक...